Saturday 12 July 2014

बचपन

                                          बचपन 


जो दबी दबी सी रहती है
होठोंं के कोने में छुपकर
उस मंद मंद मुस्काहट को
एक बार तो खिलखिलाने दो 

अपने अंदर के बचपन को
एक बार तो बाहर आने दो....

उन गीतों को क्यों भूले हैं
जिनमे मस्ती थी, खुशियां थी
हर एक उदासी भूल के अब
वो गीत ख़ुशी के गाने दो

अपने अंदर के बचपन को
एक बार तो बाहर आने दो....

तो हुआ क्या गर जीवन में
जो चाहा वो न मिला हमे
जो मिला उसकी की  मस्ती में
खुद को कुछ बहक सा जाने दो

अपने अंदर के बचपन को
एक बार तो बाहर आने दो....

जब गम के  बादल गहरायें
हो जाएँ सघन  दुःख के साये
बाहर  पड़ती बारिश में भीग
हर गम को पिघल बह जाने दो

अपने अंदर के बचपन को
एक बार तो बाहर आने दो....

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