Sunday 29 June 2014

वो औरत पागल लगती है

  वो औरत पागल लगती है

सपनो में जो रहती थी कभी....
माँ बाप से पाती सारी खुशी
सब रिश्ते नाते छोड़ के जो
ससुराल का रुख कर लेती है

वो औरत पागल लगती है....

जब कोख में आया प्राण नया
देने को जन्म बड़ा दर्द सहा
पर बाहों में पाकर जीवन नया
हर रोम से जो हंस लेती है

वो औरत पागल लगती है.…

जब  हँसता है तो हँसती है
जब रोता है तो रोती  है
अपने बच्चे क साथ में जो
अपने अस्तित्व को खोती है

वो औरत पागल लगती है..... 

अपना जीवन देती है वार ...
खुशियों का देती नया संसार....
अपने सब सपने भूल के जो
औलाद के सपने जीती है

वो औरत पागल लगती है..... 

जर्जर हुआ जब उसका तन
और प्रेम की आस लगता मन
तब अपनी औलादों के हाथों
घर से जो निकाली  जाती है

वो औरत पागल लगती है..... 

धुंधली सी आँखें कातर है
गैरों की दया पर निर्भर है
पर नम उदास आँखों से भी जो
औलाद क लिए दुआ पढ़ती है

वो औरत पागल लगती है..... 

सच में ही पागल लगती है.…।

















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