बचपन
जो दबी दबी सी रहती है
होठोंं के कोने में छुपकर
उस मंद मंद मुस्काहट को
एक बार तो खिलखिलाने दो
अपने अंदर के बचपन को
एक बार तो बाहर आने दो....
उन गीतों को क्यों भूले हैं
जिनमे मस्ती थी, खुशियां थी
हर एक उदासी भूल के अब
वो गीत ख़ुशी के गाने दो
अपने अंदर के बचपन को
एक बार तो बाहर आने दो....
तो हुआ क्या गर जीवन में
जो चाहा वो न मिला हमे
जो मिला उसकी की मस्ती में
खुद को कुछ बहक सा जाने दो
अपने अंदर के बचपन को
एक बार तो बाहर आने दो....
जब गम के बादल गहरायें
हो जाएँ सघन दुःख के साये
बाहर पड़ती बारिश में भीग
हर गम को पिघल बह जाने दो
अपने अंदर के बचपन को
एक बार तो बाहर आने दो....
जो दबी दबी सी रहती है
होठोंं के कोने में छुपकर
उस मंद मंद मुस्काहट को
एक बार तो खिलखिलाने दो
अपने अंदर के बचपन को
एक बार तो बाहर आने दो....
उन गीतों को क्यों भूले हैं
जिनमे मस्ती थी, खुशियां थी
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वो गीत ख़ुशी के गाने दो
अपने अंदर के बचपन को
एक बार तो बाहर आने दो....
तो हुआ क्या गर जीवन में
जो चाहा वो न मिला हमे
जो मिला उसकी की मस्ती में
खुद को कुछ बहक सा जाने दो
अपने अंदर के बचपन को
एक बार तो बाहर आने दो....
जब गम के बादल गहरायें
हो जाएँ सघन दुःख के साये
बाहर पड़ती बारिश में भीग
हर गम को पिघल बह जाने दो
अपने अंदर के बचपन को
एक बार तो बाहर आने दो....