Saturday 21 June 2014

दुःख और सुख

दुःख और सुख 


एक दुःख है और एक सुख है,
दोनों का कैसा नाता है
क्यूँ साथ नहीं रहते दोनों
एक जाता तो एक आता है
क्यूँ सुख में ही है लहर उमंग
और दुःख में घोर निराशा है
जबकि सुख तो है क्षणभंगुर
और दुःख नए सुख की आशा है
दुःख के दिन चाहे दर्द भरे
और बिना नींद की रातें हैं
पर यही वो दिन हैं हो हमको
जीवन के सबक सिखाते हैं
है कौन साथ और कौन नहीं
है अपना कौन पराया है
हैं चेहरे किस किस चेहरे पर
ये बस दुःख ने समझाया है
जो दुःख के हर पल में है सबल
जो डट के खड़ा हर मुश्किल में
है जीत उसी की सुख उसका
हर ख़ुशी उसी के हासिल में
चाहे दुःख हो कितना ही बड़ा
तुम खड़े रहो डटकर थमकर
ये रात यूँ ही कट जाएगी
उजला दिन लाएगा दिनकर.....


                              - नितिका

No comments:

Post a Comment