Saturday 12 July 2014

बचपन

                                          बचपन 


जो दबी दबी सी रहती है
होठोंं के कोने में छुपकर
उस मंद मंद मुस्काहट को
एक बार तो खिलखिलाने दो 

अपने अंदर के बचपन को
एक बार तो बाहर आने दो....

उन गीतों को क्यों भूले हैं
जिनमे मस्ती थी, खुशियां थी
हर एक उदासी भूल के अब
वो गीत ख़ुशी के गाने दो

अपने अंदर के बचपन को
एक बार तो बाहर आने दो....

तो हुआ क्या गर जीवन में
जो चाहा वो न मिला हमे
जो मिला उसकी की  मस्ती में
खुद को कुछ बहक सा जाने दो

अपने अंदर के बचपन को
एक बार तो बाहर आने दो....

जब गम के  बादल गहरायें
हो जाएँ सघन  दुःख के साये
बाहर  पड़ती बारिश में भीग
हर गम को पिघल बह जाने दो

अपने अंदर के बचपन को
एक बार तो बाहर आने दो....

Sunday 29 June 2014

वो औरत पागल लगती है

  वो औरत पागल लगती है

सपनो में जो रहती थी कभी....
माँ बाप से पाती सारी खुशी
सब रिश्ते नाते छोड़ के जो
ससुराल का रुख कर लेती है

वो औरत पागल लगती है....

जब कोख में आया प्राण नया
देने को जन्म बड़ा दर्द सहा
पर बाहों में पाकर जीवन नया
हर रोम से जो हंस लेती है

वो औरत पागल लगती है.…

जब  हँसता है तो हँसती है
जब रोता है तो रोती  है
अपने बच्चे क साथ में जो
अपने अस्तित्व को खोती है

वो औरत पागल लगती है..... 

अपना जीवन देती है वार ...
खुशियों का देती नया संसार....
अपने सब सपने भूल के जो
औलाद के सपने जीती है

वो औरत पागल लगती है..... 

जर्जर हुआ जब उसका तन
और प्रेम की आस लगता मन
तब अपनी औलादों के हाथों
घर से जो निकाली  जाती है

वो औरत पागल लगती है..... 

धुंधली सी आँखें कातर है
गैरों की दया पर निर्भर है
पर नम उदास आँखों से भी जो
औलाद क लिए दुआ पढ़ती है

वो औरत पागल लगती है..... 

सच में ही पागल लगती है.…।

















Saturday 28 June 2014

2.




ना आसमान की चाहत है
ना शिखर की ख्वाहिश रखती हूँ
अपनों के दिल में पाऊं जगह
बस इतनी सी साज़िश करती हूँ........।


Wednesday 25 June 2014

कुछ भूल गए कुछ याद रहा

कुछ भूल गए कुछ याद रहा 


कुछ भूल गए, कुछ याद रहा 
कुछ दूर हुए, कुछ पास रहा 

फिर क्यों उन भूली बातों को 
दोबारा गले लगाना हो,
भूले बिसरे उन किस्सों को 
फिर क्यूँकर ही दोहराना हो.… 

जो दूर हुए वो दूर सही 
जो पास है उनको अपनाएं,
उन दूर जा चुके रिश्तों पर 
क्यों अपना वक़्त गंवाना हो..... 

कुछ भूल गए,कुछ याद रहा
 कुछ दूर हुए ,कुछ पास रहा 

सुनहरा पल

                                                                सुनहरा पल  

अपनी आँखों को मींचे....         
अपनी साँसों को खींचे,             
कुछ खो जाने के डर से....
जो खोता है हर पल को,
वो क्या खोजेगा कल को...
एक सुनहरे पल को।


हो डगर बहुत ही कठिन या
,हो सफ़र चुनौती वाला
तकलीफों से घबराकर
,जो छोड़ेगा मंजिल को
वो क्या खोजेगा कल को
   एक सुनहरे पल को


जिसमे लड़ने का जज़्बा...

जिसको हो जीत की चाहत,
अपनी हिम्मत के बल से...
जो चीर दे हर मुश्किल को,
वो ही पायेगा कल को...
एक सुनहरे पल को। 

Sunday 22 June 2014

1.



दुखों की क्या औकात जो आँखों को नम कर जाये ………।
ये तो खुशियां हैं जिनमे आँखें छल छला  जाती हैं.………। । 

Saturday 21 June 2014

रिश्ते

रिश्ते 

रिश्ते ये कैसे रिश्ते हैं,
कुछ साथ रहे कुछ धुआँ हुए ,
कुछ साथ रहे पर ऐसे कि,
जैसे वो खुद ही खुदा हुए। 
रिश्ते क्यों जुड़ते टूटते हैं,
क्यों चलते उम्र तमाम नहीं,
जिन रिश्तों में था प्यार कभी,
क्यों उनका नामों-निशान नहीं। 
जो भरे सिर्फ कड़वाहट से,
क्यों बंधना उनसे पड़ता है,
उन रिश्तों का अस्तित्व है क्यों,
जिनमें भावों  की जड़ता है। 
इस दिल बस ये चाहत है,
ये हर पल बस ये दुआ करे,
इस दिल से जुड़े जो रिश्ते हों,
वो मुझसे कभी ना जुदा रहें। 
                             

                                      -नितिका 

दुःख और सुख

दुःख और सुख 


एक दुःख है और एक सुख है,
दोनों का कैसा नाता है
क्यूँ साथ नहीं रहते दोनों
एक जाता तो एक आता है
क्यूँ सुख में ही है लहर उमंग
और दुःख में घोर निराशा है
जबकि सुख तो है क्षणभंगुर
और दुःख नए सुख की आशा है
दुःख के दिन चाहे दर्द भरे
और बिना नींद की रातें हैं
पर यही वो दिन हैं हो हमको
जीवन के सबक सिखाते हैं
है कौन साथ और कौन नहीं
है अपना कौन पराया है
हैं चेहरे किस किस चेहरे पर
ये बस दुःख ने समझाया है
जो दुःख के हर पल में है सबल
जो डट के खड़ा हर मुश्किल में
है जीत उसी की सुख उसका
हर ख़ुशी उसी के हासिल में
चाहे दुःख हो कितना ही बड़ा
तुम खड़े रहो डटकर थमकर
ये रात यूँ ही कट जाएगी
उजला दिन लाएगा दिनकर.....


                              - नितिका

हाँ मुझको भी कुछ बनना है

हाँ मुझको भी कुछ बनना है



आँखों में मेरी ख्वाब बहुत....
नींदों बिन काटी रात बहुत....
उस आसमान में बैठे उन..
तारों से आगे बढ़ना है...
हाँ मुझको भी कुछ बनना है।

पूरे सबके अरमान किये...
बस रिश्तों की खातिर ही जिए...
पर अब अपने अरमानों के...
हर हक को हासिल करना है...
हाँ मुझको भी कुछ बनना है।

कभी बेटी थी,फिर बहू बनी...
फिर माँ बन पाई सभी ख़ुशी...
पर अब अपनी तकदीर को...
अपने ही हाथों से लिखना है..
हाँ मुझको भी कुछ बनना है।

जिसने देखी सूरत ही मेरी...
सीरत मेरी पहचानी नहीं....
हर शिखर को हासिल करके मुझे...
उन सबकी सोच बदलना है...
हाँ मुझको भी कुछ बनना है।
हाँ मुझको भी कुछ बनना है।।
                    

                                  -नितिका